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एक किसान की आत्मकथा Autobiography of a Farmer in Hindi

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इस लेख में एक किसान की आत्मकथा Autobiography of a Farmer in Hindi 1000 शब्दों में लिखा गया है। एक किसान की आत्मकथा निबंध भी परीक्षाओं में तीन से छः अंकों के लिए पूछे जाते हैं। दिए हुए आत्मकथा को किसी भी परीक्षा में बेझिझक लिखने के लिए सीखा जा सकता है।

एक किसान की आत्मकथा Autobiography of a Farmer in Hindi (निबंध रूप में)

Contents

कहते हैं की किसान का दर्ज़ा किसी भी देश में सबसे बड़ा माना जाता है| मैं एक किसान हूँ तथा अपने द्वारा रोपित एक-एक बीज की कीमत जानता हूँ, मेरे पिता जी तथा मेरे दादा जी सभी किसान थे।

मैं खुद को उनसे ज्यादा खुशनसीब मानता हूँ क्योंकि मेरा जन्म आज़ादी के पश्चात हुआ जिससे मुझे उतनी तकलीफों का सामना नहीं करना पड़ा जो मेरे पिता व दादा को करना पड़ा था।

मेरा शुरुवाती जीवन Early Life of a Farmer

भारत देश को एक कृषि प्रधान देश की उपमा दी जाती है क्योंकि भारत की राष्ट्रीय आय में लगभग 68% कृषि का योगदान होता है। मेरे पिता-दादा जी के प्रारंभिक जीवन के बारे में बचपन में दादी से सुना था की उनकी स्थिति बेहद नाज़ुक और दयनीय थी लेकिन उन्होंने खून-पसीने से अपने परिवार को पाला जिसमें मेरा बचपन भी शामिल था।

मेरा नाम श्याम सुन्दर माली है मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के बेहद छोटे से गाँव हरिपुर में हुआ था। मेरे पिताजी तथा माताजी जन्म से निरक्षर थे तो उन्होंने मुझे शुरुवाती शिक्षा के लिए जिले एक एक सरकारी प्राथमिक शाला में भेजा जो कक्षा चार तक था प्राथमिक शिक्षा के वजह से सामान्य जोड़ तथा पैसे का लेखाजोखा वही से सीखा लेकिन धन के अभाव में आगे की पढाई न कर सका और पिताजी के काम में हाथ बटाने लगा।

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मैं और मेरे पिताजी पहली पहर से लेकर सूर्यास्त की आख़िरी रौशनी तक खेतों में काम करते थे और उसके बाद बैलों को चारा-पानी देना और भोजन कर रात्री विश्राम करना यही मेरे युवावस्था तक का प्रमुख कार्य रहा।

मेरे जीवन की कठिनाइयाँ Obstacles of My Life

एक किसान होने के यहाँ पैदा होने का मतलब गरीबी और तकलीफों से सामना, मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ अम्मा कहती थी की डॉक्टर ने मेरी बचने की उम्मीद बहुत कम थी क्योंकि मैं कुपोषण के साथ पैदा हुआ था लेकिन सबकी दुआओं से मैं बाख गया।

मेरे पिताजी किस्मत के सामने हार मान चुके थे जैसे की और किसानों की हालत थी लेकिन वे रोज एक नई ताकत के साथ खेतों में जाते थे।

एक किसान अपनी पूंजी तथा श्रम, शरीर सभी को अपने खेत में बो देता है और उस उपज को बेहद मामूली रकम पर साहूकारों को बेच देता है। इसे एक किसान का दुर्भाग्य कहें तो कोई अनिश्योक्ति नहीं होगी क्योंकि जिस प्रकार एक माता अपनी संतान को नौ महीने गर्भ में रखकर शिशु को पोषण देती है उसी प्रकार एक किसान भी अपनी जमीन को अपना सर्वस्व समर्पित कर देता है।

मेरे युवावस्था के पहले कदम पर ही मेरा विवाह हो गया और दो साल में एक संतान भी हुई जिसका नाम चंद्रराज रखा है लेकिन मेरी ख़ुशी ज्यादा देर ठहर न सकी क्योंकि कुछ महीने बाद ही पिता जी का रोगवश देहांत हो गया जिसके कारण अपने युवावस्था में ही मेरे ऊपर परिवार को पालने का बोझ आ गया।

अब मेरे साथ मेरी धर्मपत्नी मेरा एक बेटा और मेरी बूढी और बीमार माँ के निर्वहन का कर्तव्य भी जुड़ गया था और इस काम में मेरी धर्मपत्नी भी जुड़ गयी मेरे साथ खेत में काम करना तथा मेरे लिए रुखी सुखी रोटी तथा सहयोग लेकर साथ रहना उसकी दिनचर्या बन गयी।

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दिन के सभी पहर खेत में काम करने के बावजूद गुज़ारा बहुत मुश्किल से हो पाता था छोटे से जमीन के टुकड़ें पर जो भी अनाज उगता उससे हमें एक लम्बे समय तक गुज़ारा चलाना पड़ता। मेरी पत्नी अपने जवानी में ही मुरझा रही थी जिसे मैं हर रोज महसूस कर रहा था कुपोषण के कारण बच्चों की पसलियाँ गिनी जा सकती थी।

कुछ महीने बाद ही माता जी का स्वर्गवास हो गया और आर्थिक और सामजिक रूप से पूरा भार मेरे सिर पर आ गया। हर रोज एक नई तकलीफ रास्ता रोके खड़ी रहती थी कभी बीमार पत्नी-बच्चों के लिए पैसे का न होना तो कभी सिचाई के लिए पानी का न होना और इन्ही तकलीफों के बीच मेरा युवावस्था खप गया।

जवानी के कगार पर पहुचते ही स्थिति इतनी ख़राब हो गयी की जमीन को गिरवी रखकर कुछ पैसे उधार लेने की नौबत आ पड़ी और जिस उधार की किस्ते मैंने अनाज और ब्याज़ के साथ पंद्रह सालों तक चुकाया।

मेरे जीवन के बदलाव Change in My Farmer Life

मैंने दरिद्रता के कई रूप देखे, मैंने अपने साथियों को रोग, भूख और क़र्ज़ से मरते देखा। भारत को आजाद हुए दशकों हो चुके लेकिन आज भी किसान की स्थिति गुलामों की तरह है जिसके जान-माल का कोई मोल नहीं है आज हर रोज बड़ी मात्रा में किसान आत्महत्या कर रहें हैं।

मेरे मन में आत्महत्या के कई विचार आये पर अपने बच्चों पर मैं वो परेशानी नहीं आने देना चाहता था जो मैंने बचपन में सही थी।

मेरे अनुभव के हिसाब से किसानों की जिंदगी सबसे सस्ती होती है क्योंकि आजादी के बाद कई साल तक किसानों के लिए अनेकों योजनाएँ निकली लेकिन हम जैसे किसानों की जिंदगी में कुछ ज्यादा बदलाव नहीं आया लेकिन गत कुछ वर्षो में वर्तमान सरकार के द्वारा कुछ ऐसे काम हुए जिसका लाभ किसानों को सीधा पंहुचा और बड़ी मात्रा में किसानों के जीवन में बदलाव आये।

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कुछ सरकारी योजनाओं के तहत कम ब्याजदरों पर मुझे कृषि ऋण मिला जिसका उपयोग मैंने अपने खेत को आधुनिक करने में लगाया बैलों के जगह आधुनिक व सस्ती मशीनें खरीदी तथा अनाज का सही दाम पाया।

मेरी चार संताने हैं जिन्हें मैं अधिकतर पढ़ने का आग्रह ही करता हूँ ताकि उन्हें कभी किसान न बनना पड़े, सरकारी विद्यालय में उनका दाखिला करवाया और अपने पढाई के समय के अलावा वे मेरे साथ खेतों में मेरी सहायता करते हैं।

अपने समय श्रम को मैंने अपनी मिट्टी में लगा दिया और अब शरीर भी उतनी फुर्तीली नहीं रही की तीन पहर मेहनत कर सकें आज भी जीवन में कुछ बड़े बदलाव की आशा लेकर मैं खेतों में पहुचता हूँ।

निष्कर्ष Conclusion

आपने इस लेख में एक किसान की आत्मकथा Autobiography of a Farmer in Hindi पढ़ा जिसमें एक किसान दुख-दर्द और जीवन को आप करीब से जान पाएंगे। अगर यह लेख व निबंध आपको सरल लगा हो और पसंद आया हो तो इसे शेयर जरुर करें।